मेरे डैड को किसने मारा?

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मेरे डैड को किसने मारा?” का सारांश

“मेरे डैड को किसने मारा?” आधुनिक वातावरण में पली-बढ़ी एक पाकिस्तानी लड़की सलमा की दर्द भरी कहानी है। स्कूल के दिनों में उसे जिंदगी बहुत हसीन लगती थी। उसके डैड कर्नल रहमान जो आईएसआई में काम करते थे, उसके हीरो थे। उसकी हँसी-खुशी गायब हो गई जब जिहादियों को ट्रेनिंग देने के लिए उनका ट्रांसफर बालाकोट हो गया। वह कभी नहीं भूल पाई कि ट्रांसफर के बारे में बताने के समय उन्होंने कहा था कि “पता नहीं इन कम्बख्तों को कब समझ आयेगा कि जिहाद के बल पर हिंदुस्तान से कश्मीर नहीं ले सकते; कोई भी देश अपने लोगों को मरवाने के लिए इस तरह नहीं भेजता जैसे पाकिस्तान करता है।”

सलमा इंग्लैंड में जेनेटिक्स की पढ़ाई कर रही थी जब पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों पर फिदायीन हमला हुआ और इंडिया ने बालाकोट पर बम गिराकर बदला लिया जिसमें जिहादियों के साथ कर्नल रहमान भी मारे गए। सलमा को गहरा सदमा लगा। वह अपने आप से सवाल करती थी कि उसके डैड की मौत के लिए कौन जिम्मेदार है, वे लोग जो जिहादियों को तैयार करते हैं या वे लोग जिन्होंने बालाकोट पर बम गिराया? उसका दिल और दिमाग कहता था कि असली गुनाहगार पाकिस्तान की सरकार, फौज और आईएसआई हैं; अगर पाकिस्तान में

दहशतगर्दी का धंधा नहीं चलता तो उसके डैड नहीं मारे जाते। गुस्से के मारे वह बदले की आग में जलने लगी लेकिन किससे बदला ले और कैसे?

पाकिस्तान में आईएसआई की एक एजेंट फ़िज़ा जो कॉलेज में सलमा से दो साल सीनियर थी और जबरदस्ती उसको अपनी छोटी बहन बना लिया था, उसे भड़काती रहती थी कि उसके अब्बा के कातिल काफिर हैं जिनसे उसे बदला लेना चाहिए। बहुत समय तक सलमा उसकी बातों में नहीं आई लेकिन एक दिन कमज़ोर पड़ गई और मान लिया कि हिंदुस्तानियों ने ही उसके डैड को मारा है। फ़िज़ा की सिफारिश पर आईएसआई ने सलाम को जिहादियों के एक सीक्रेट ग्रुप में शामिल कर लिया। आईएसआई पहले से ही चाहता था कि वक्त आने पर सलमा उसके लिए काम करे।

सलमा को इंडिया से आए एक डेलिगेशन के सदस्यों को बम से उड़ा देने का काम दिया गया। यह दूसरा सदमा था। जिन लोगों से वह बदला लेना चाहती थी वेही लोग उसका इस्तेमाल करना चाहते थे। यह जानते हुए भी कि आईएसआई से गद्दारी की सजा मौत है, उसने उसी बम से कुछ जिहादियों को उड़ा दिया। आईएसआई के एक एजेंट ने उसे जान से मारने के कोशिश की लेकिन वह बच गई। अब वह पूरी जिंदगी डर के साए में बिताने को मजबूर थी।

 कहानी के पात्र

दो व्यक्तियों – कैप्टन अभिनंदन जिनका प्लेन पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में गिर जाने के बाद पाकिस्तान की सेना ने पकड़ लिया था लेकिन बाद में छोड़ दिया और बीस वर्षीय आदिल मोहम्मद डार जिसने पुलवामा

में सीआरपीएफ के जवानों पर फिदायीन हमला किया था – को छोड़कर सभी पात्र काल्पनिक हैं। यदि कोई वास्तविक व्यक्ति किसी काल्पनिक पात्र से मिलता-जुलता है, तो यह केवल संयोग है।

कहानी में वर्णित घटनाएँ

ऐतिहासिक या सार्वजनिक ज्ञान में उपलब्ध तथ्यों को छोड़ कर सभी घटनाएं, विवरण और वार्तालाप काल्पनिक हैं।

कहानी की भाषा

कहानी की भाषा सरल है, साहित्यिक नहीं, ताकि किसी भी पाठक या पाठिका को कठिनाई नहीं हो। कहानी के पात्र तीन भाषाओं – अंग्रेजी, उर्दू और बहासा जो इंडोनेशिया की राष्ट्रभाषा है – में बातचीत करते हैं। अंग्रेजी और बहासा में बातचीत का अनुवाद आम बोलचाल की हिंदी में है। इस तरह की हिंदी में बात करते समय हम धड़ल्ले से अंग्रेजी और उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। उर्दू में बातचीत प्रस्तुत करते समय जहाँ तक संभव हुआ, उर्दू के आसान शब्दों का इस्तेमाल हुआ है। उर्दू में बातचीत में या लिखाई में अंग्रेजी शब्द का प्रयोग एक सामान्य बात है। यहाँ भी उस तरह के अंग्रेजी शब्द रखे गए हैं।

कहानी की सामग्री के स्रोत

पुस्तक को पढ़ने पर पाठक को लगेगा कि सामग्री एकत्र करने के लिए बहुत रिसर्च किया गया है जो सच है। अनेक पुस्तकों और लेखों से जिन्हें पढ़ने में बहुत समय लगा था, सामग्री ली गई है। क़ुरान के जिन आयतों का पुस्तक में उल्लेख है, वे वर्ष 2000 में प्रकाशित “पवित्र क़ुरआन (सरल हिंदी अनुवाद)”[1] से ली गई हैं। अगर किसी आयत की भाषा से किसी को आपत्ति है तो उसके लिए लेखक जिम्मेदार नहीं है। 

 अस्वीकारण (डिसक्लेमर)

पुस्तक में विश्व के चार प्रमुख धर्मो – क्रिश्चियानिटी, इस्लाम, हिंदू और बौद्ध – के बारे में जो कुछ भी लिखा हुआ है उसका उद्देश्य किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। उद्देश्य केवल ऐकैडेमिक चर्चा है जिसे किसी भी जातांत्रिक देश में आपत्तिजनक नहीं कहा जा सकता। फिर भी, अगर किसी की धार्मिक भावना आहत होती है तो लेखक क्षमा प्रार्थी हैं।

देवेंद्र नारायण

 

[1] अनुवादक: मौलाना मुहम्मद फारूक फारूक खाँ और डॉक्टर मुहम्मद अहमद। प्रकाशक: मधु संदेश संगम, अबुल फ्ज़्ल इन्क्लेव, जामियानगर, नई दिल्ली- 110025

आभार

किसी उपन्यास को अकेले दम पर पूरा करना एक कठिन कार्य है।

मेरे डैड को किसने मारा?” को पूरा करने में मुझे तीन लोगों ने सहायता की।

मेरी धर्मपत्नी छाया नारायण और मेरे घनिष्ठ मित्र (स्वर्गीय) हरीशचन्द वाधवा की धर्मपत्नी उर्मिल वाधवा (जो कनाडा में रहती हैं) ने बहुत ध्यान से पांडुलिपि को पढ़कर टाइपिंग की अशुद्धियों को दूर किया। उर्मिल वाधवा ने विशेष रूप से उर्दू के शब्दों को सही ढंग से लिखने में मेरी बहुत सहायता की।

एवोलिक्स टेक्नालजी (मोबाइल: 9910470972; वेबसाइट:  www.evolix.in) ने आवरण पृष्ठ बनाया है।

मैं इन सब का हृदय से आभारी हूँ।

देवेंद्र नारायण

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Written by Devendra Narain
Date of birth: January 1, 1941 Educational qualification: Master of Arts (First Class) in Political Science Visiting Fellow: (one year, 1978-79), University of Oxford, UK. Job Experience: Teaching job: Lecturer in Political Science, Patna University (February 1963 to October 1965) Indian Revenue Service: November 1965 to December 2000. Important positions held in Government of India: Head of the Project Appraisal Division (Planning Commission), Head of the Project Monitoring Division and Joint Secretary/Additional Secretary (Department of Programme Implementation), Chief Commissioner of Income Tax and Member, Appellate Tribunal for Forfeited Property. Retired from Government of India on December 31, 2002, as Member, Appellate Tribunal for Forfeited Property. Experience as trainer: more than 50 national and international training programmes on project management International Experience: Indian member of Inter-governmental committee on project management system by the Commonwealth Secretariat in 1985; Member of Indian delegation to the (erstwhile) Soviet Union (1986) Area of expertise: Project Management (ex-ante Project Appraisal, CBA, Monitoring, ex-post evaluation). Experience as author: Co-author of a book on Indian Constitution in 1970 (now out of print); More than two dozen articles on different aspects of project management; 11 stories (10 satirical and one serious) in English and Hindi, published in leading magazines and a leading Hindi newspaper. Presently writing articles on social, political, economic and administrative issues available on my website and LinkedIn. Website: https://www.devendranarain.com Present on social media (Facebook, LinkedIn, Instagram, Twitter, etc.) Published collection of short stories in Hindi: "ये टेढ़े मेढ़े रास्ते". Paperback available on Amazon and Flipkart; ebook available on Amazon.